Thursday, 30th of October 2025

फूलन देवी: चंबल के बीहड़ों से देश की सबसी बड़ी पंचायत तक

Reported by: GTC News Desk  |  Edited by: Mohd Juber Khan  |  October 30th 2025 09:29 AM  |  Updated: October 30th 2025 11:18 AM
फूलन देवी: चंबल के बीहड़ों से देश की सबसी बड़ी पंचायत तक

फूलन देवी: चंबल के बीहड़ों से देश की सबसी बड़ी पंचायत तक

GTC News: फूलन देवी देश का एक ऐसा क़िरदार है, जिस पर मीडिया गलियारों में गाहे-बगाहे बातें होती ही रहती हैं। फूलन देवी, जो कभी दबंगों के ज़ुल्म की शिकार नज़र आती हैं, तो कभी वो प्रतिशोध का नाम है, तो कभी प्रेरणा की प्रतीक भी नज़र आती हैं। शायद यही वजहें हैं कि अस्सी के दशक में फूलन देवी का नाम फिल्म शोले के गब्बर सिंह से भी ज़्यादा ख़तरनाक बन चुका था। 

उस दौर में ऐसा कहा जाता था कि फूलन देवी का निशाना बड़ा अचूक था और उससे भी ज़्यादा कठोर था उनका दिल। फूलन देवी 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं।

समाजशास्त्रियों का ऐसा मानना है कि हालात ने ही फूलन देवी को इतना मज़बूत बना दिया कि जब उन्होंने बहमई (कानपुर देहात) में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें ज़रा भी मलाल नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने कहा कि ये तो होना ही थी और इसके लिए मैं नहीं, बल्कि ये ख़ुद ही ज़िम्मेदार हैं।

उस समय फूलन देवी की लोकप्रियता किसी फ़िल्मी सितारे से कम नहीं थी, यही वजह है कि फूलन देवी के मुश्किल दिनों पर कई फ़िल्में भी बनीं।

हालांकि पुलिस का डर उन्हें हमेशा बना रहता था। साथ ही ख़ासकर ठाकुरों से उनकी दुश्मनी थी, इसलिए उन्हें अपनी जान का ख़तरा हमेशा महसूस होता था।

अर्जुन सिंह ने बदली एक डाकू की क़िस्मत!

उस ज़माने के मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले और उस वक़्त उनकी एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ जमा थी। उन दिनों, फूलन देवी ने लाल रंग का कपड़ा माथे पर बांधा हुआ था और हाथ में बंदूक लिए जब वे मंच की तरफ़ बढ़ीं थीं तो सबकी सांसें जैसे थम सी गई थीं। कुछ ही लम्हों में फूलन देवी ने अपनी बंदूक माथे पर छुआकर फ़िर उसे अर्जुन सिंह के पैरों में रख दिया।

यही वो घड़ी थी, जब फूलन देवी ने डाकू की ज़िंदगी को अलविदा कह दिया था। ऐसा कहा जाता है कि फूलन मिज़ाज से बहुत चिड़चिड़ी थीं और किसी से बात नहीं करती थीं, करती भी थीं तो उनके मुंह से कोई न कोई गाली निकल ही जाती थी। यही नहीं, फूलन देवी ख़ासतौर से पत्रकारों से बात करने से भी कतराती थीं।

फूलन देवी को क्यों करना पड़ा आत्मसमर्पण?

कई जाने-मानें पत्रकारों के बक़ौल, चंबल के बीहड़ों में पुलिस और ठाकुरों से बचते-बचते शायद वह थक गईं थीं, इसलिए उन्होंने हथियार डालने का मन बना लिया, लेकिन शायद आत्मसमर्पण का भी रास्ता इतना आसान नहीं था। असल में फूलन देवी को शक़ था कि उत्तर प्रदेश की पुलिस उन्हें समर्पण के बाद किसी ना किसी तरीक़े से मार देगी, इसलिए उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालने के लिए सौदेबाज़ी की या कहें कि एक तरह का समझौता कर लिया।

फूलन देवी को आत्मसमर्पण की एक ऐतिहासिक घटना के तौर पर भी देखा जा सकता है, क्योंकि उनके बाद चंबल के बीहड़ों में सक्रिय डाकुओं का आतंक धीरे-धीरे ख़त्म होता चला गया। चंबल के बीहड़ों में सक्रिय डाकू कई प्रदेशों की सरकारों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बने हुए थे और कुछ इलाक़ों में तो उनका हुक्म टालने की हिम्मत नहीं की जाती थी। फूलन देवी ने 1983 में आत्मसमर्पण किया और कमोबेश 9 साल तक वो जेल में रही।

जब खलनायिका से नायिका बनीं फूलन देवी!

1994 में जेल से रिहा होने के बाद फूलन देवी देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए 1996 में सांसद चुनी गईं। समाजवादी पार्टी ने जब उन्हें लोक सभा का चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया, तो काफ़ी हो हल्ला हुआ कि एक डाकू को संसद में पहुंचाने का रास्ता दिखाया जा रहा है। 1994 में उनकी ज़िंदगी पर शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' नाम से फ़िल्म बनाई, जिसे ना केवल भारत में, बल्कि पूरे यूरोप में ख़ासी लोकप्रियता मिली। हालांकि ये फ़िल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर काफ़ी विवादों में भी रही थी। फ़िल्म में फूलन देवी को एक ऐसी बहादुर महिला के रूप में पेश किया गया, जिसने समाज की ग़लत प्रथाओं के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।

हर ज़बान पर था फूलन देवी का नाम!

गौरतलब है कि फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक गांव में 1963 में हुआ था और 16 वर्ष की उम्र में ही कुछ डाकुओं ने उनका अपहरण कर लिया था। बस उसके बाद ही उनका डाकू बनने का रास्ता बन गया था और उन्होंने 14 फ़रवरी 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों की हत्या कर दी थी। इस घटना ने फूलन देवी का नाम बच्चे की ज़बान पर ला दिया था। फूलन देवी का कहना था उन्होंने ये हत्याएं बदला लेने के लिए की थीं। उनका कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था, जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं की थीं।

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