Thursday, 13th of November 2025

विश्व निमोनिया दिवस: भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के माता-पिता सावधान!

Reported by: GTC News Desk  |  Edited by: Mohd Juber Khan  |  November 12th 2025 03:29 PM  |  Updated: November 12th 2025 03:29 PM
विश्व निमोनिया दिवस: भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के माता-पिता सावधान!

विश्व निमोनिया दिवस: भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के माता-पिता सावधान!

GTC Health: 12 नवंबर को दुनिया भर में विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि आख़िर पूरी दुनिया में विश्व निमोनिया दिवस के लिए इतनी गंभीरता क्यों दिखती है?

तो आपको बता दें कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि भले ही हम मॉडर्न टेक्नोलॉजी और एडवांस्ड मेडिकल के दौर में जी रहे हों, बावजूद इसके निमोनिया आज भी दुनिया में सबसे ज़्यादा जान लेने वाली संक्रामक बीमारी बनी हुई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़, यह संक्रामक रोग पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु की सबसे वजह मानी जाती है। यही नहीं, इसके साथ ही यह बुज़ुर्गों और पुरानी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए भी निमोनिया को बड़े गंभीर ख़तरे को तौर पर देखा जाता है।

भारत में निमोनिया  के आंकड़े क्या कहते हैं?

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत में निमोनिया के बीमारी बेतहाशा फैली हुई है। मेडिकल एक्सपर्ट्स का दावा है कि भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की कुल मृत्यु में से लगभग 14 से 26 फ़ीसदी मौतें निमोनिया की वजह से होती हैं। एक मेडिकल सर्वे का दावा है कि देश में इस आयु वर्ग के लगभग 14.9 प्रतिशत बच्चों की मौत का कारण निमोनिया बनता है। कुछ आंकड़ों में यह अनुपात 18 परसेंट तक पाया गया है। ये आंकड़े वास्तव में चिंताजनक हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि बच्चों को किस क़दर निमोनिया की ज़द में नहीं आने देना, आज के पेरेंट्स (माता-पिता) के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

भारत में कम्युनिटी-एक्वायर्ड निमोनिया, यानी किसी समुदाय से फैलने वाला निमोनिया दुनिया के कुल मामलों का लगभग 23 फ़ीसदी है। शायद यही वजहा है कि हर साल लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं। जब किसी व्यक्ति को निमोनिया होता है, तो उसके फेफड़ों के वायुकोष में सूजन आ जाती है और उनमें तरल पदार्थ या पस भर जाती है, जिसकी वजह से खांसी, बुखार, ठंड लगना और सांस लेने में मुश्किल जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह बीमारी हल्की भी हो सकती है और गंभीर भी और अगर समय पर इलाज न मिले तो जानलेवा साबित हो सकती है।

कैसे फैलती है निमोनिया की बीमारी?

निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगस (फफूंदी) से होने वाला फेफड़ों का इंफेक्शन है। ये बीमारी तब फैलती है, जब संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है, और उसके सूक्ष्म कण हवा में फैलकर किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति दूषित सतहों को छूने के बाद अपने चेहरे, नाक या मुंह को छू ले, तो संक्रमण फैलने के आसार ज़्यादा बढ़ जाते हैं।

निमोनिया से कैसे करें बचाव?

निमोनिया ऐसी बीमारी है, जिससे हम थोड़ी सावधानी और जागरूकता से ख़ुद को और अपने परिवार को बचा सकते हैं। मसलन:-

टीकाकरण: बच्चों और बुज़ुर्गों को निमोनिया और फ्लू के टीके ज़रूर लगवाएं जाने चाहिएं। ये टीके संक्रमण से बचाने में बेहद प्रभावी हैं।

सफ़ाई और हाथ धोना: नियमित रूप से साबुन और पानी से हाथ धोएं, ख़ासकर बाहर से आने के बाद या भोजन करने से पहले।

संपर्क से बचाव: बीमार व्यक्ति के बहुत पास जाने से बचें और खांसते-छींकते समय मुंह ढकें।

पोषण पर ध्यान दें: संतुलित आहार लें, ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत बनी रहे।

स्वच्छ हवा और धूम्रपान से दूरी: घर के अंदर धुआं और प्रदूषण से बचें। बच्चों और बुज़ुर्गों को धूम्रपान के धुएं से दूर रखें।

समय पर इलाज: अगर खांसी, बुखार या सांस फूलने जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। समय पर इलाज से यह बीमारी पूरी तरह ठीक की जा सकती है।

नींद और निमोनिया का कैसे है सीधा संबंध?

हम अक़्सर सोचते हैं कि नींद केवल आराम के लिए ही ज़रुरी होती है, लेकिन वास्तव में नींद हमारे मेंटल स्टेट के लिए बेहद मायने रखती है। गहरी नींद के दौरान शरीर साइटोकाइन नामक प्रोटीन बनाता है, जो संक्रमण और सूजन से लड़ने में मदद करते हैं। यही वजह है कि अगर किसी शख़्स को पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं मिलती, तो उसका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर हो जाता है और वह बीमारियों, ख़ासकर निमोनिया जैसी संक्रमणों, के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हो जाता है। कई मेडिकल रिसर्च इस नतीजे पर पहुंची हैं कि जो लोग सात घंटे से कम नींद लेते हैं, उनमें सर्दी, खांसी और संक्रमण होने की संभावना ज़्यादा होती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि अच्छी नींद, अच्छी सेहत की कुंजी है।

निमोनिया के ख़िलाफ़ चाहिए 'कॉमन एटिट्यूड'

निमोनिया जैसी बीमारी में उपचार के बावजूद हर साल हज़ारों बच्चे और वयस्क इसकी वजह से अपनी जान गंवा देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है जागरूकता की कमी और समय पर इलाज ना मिल पाना। हमें ऐसा नज़रिया विकसित करना होगा कि सेहत केवल दवाओं या अस्पतालों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हमारी जीवनशैली, आदतों और सामुदायिक ज़िम्मेदारी पर भी निर्भर करता है। कुल-मिलाकर अगर हम मिलकर स्वच्छता का पालन करें, टीकाकरण करवाएं, पौष्टिक आहार लें, और पर्याप्त नींद लें, तो हम न केवल ख़ुद को बल्कि अपने परिवार और समाज को भी निमोनिया से बचा सकते हैं।

बहरहाल विश्व निमोनिया दिवस हमें यह संदेश देता है कि स्वास्थ्य कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक बुनियादी अधिकार है। इस दिन 'छोटी और बड़ी' दोनों बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है, एक तरफ़ बच्चों की हंसी, परिवार का पोषण और दूसरी ओर मज़बूत स्वास्थ्य व्यवस्था जो हर ज़रूरतमंद तक पहुंचे।