GTC News: गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस सिखों के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी के अतुलनीय बलिदान को याद करने का एक पवित्र और ऐतिहासिक दिवस है। यह दिन हर साल 24 नवंबर को मनाया जाता है, जब 1675 ईस्वी में गुरु जी ने धर्म की स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। उनका यह बलिदान भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गया है, जिसके लिए उन्हें 'हिंद की चादर' (भारत की ढाल) की उपाधि से सम्मानित किया जाता है।
प्रधानमंत्री नंरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
On the 350th Shaheedi Diwas of Sri Guru Teg Bahadur Ji, we bow in reverence to his unmatched courage and sacrifice. His martyrdom for the protection of faith and humanity will forever illuminate our society. pic.twitter.com/5W5c0llrYG
— Narendra Modi (@narendramodi) November 25, 2025
महान संत, सिख पंथ के नौवें गुरु, 'हिन्द दी चादर' गुरु श्री तेग बहादुर जी महाराज के ज्योति ज्योत दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन! उनका त्यागमय और बलिदानी जीवन चिरकाल तक मानव समाज को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। pic.twitter.com/88J1Kb3VlI
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 24, 2025
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय
जन्म: गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 21 अप्रैल, 1621 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था।
पिता: वे छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह जी, के पुत्र थे।
बचपन का नाम: उनका प्रारंभिक नाम त्याग मल था, जो उनके तपस्वी और त्यागपूर्ण स्वभाव के कारण पड़ा।
गुरु गद्दी: सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकिशन जी, के निधन के बाद उन्हें 1664 में नौवें गुरु के रूप में मान्यता मिली।
आनंदपुर साहिब की स्थापना: उन्होंने 1665 में शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में आनंदपुर साहिब की स्थापना की, जिसे 'शांति का शहर' भी कहा जाता है।
बलिदान का ऐतिहासिक कारण और महत्व
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान धार्मिक कट्टरता और अत्याचार के खिलाफ खड़े होने का एक अद्वितीय उदाहरण है।
औरंगजेब का अत्याचार: 17वीं शताब्दी में, मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपनी क्रूर और कट्टर नीतियों के तहत गैर-मुस्लिमों पर जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव बनाना शुरू कर दिया था। विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों पर घोर अत्याचार किए जा रहे थे।
धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा: उत्पीड़न से त्रस्त कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी के पास आनंदपुर साहिब पहुंचा। गुरु जी ने उनकी सहायता करने का फैसला किया, यह जानते हुए भी कि इसका अर्थ मुगल साम्राज्य को सीधी चुनौती देना होगा।
बलिदान: गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब के सामने यह शर्त रखी कि यदि वह उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने में सफल हो जाता है, तो सभी पंडित स्वेच्छा से धर्म बदल लेंगे। गुरु जी ने अपने सिद्धांतों से समझौता करने से इनकार कर दिया।
शहादत: इस अडिगता के कारण, औरंगजेब के आदेश पर, 24 नवंबर, 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में उन्हें बेरहमी से शहीद कर दिया गया। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता और मानवीय सम्मान के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। उनका यह कार्य हिंदू धर्म और सिख धर्म की एकता का भी प्रतीक बन गया।
शहादत से जुड़े पवित्र स्थल
गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान स्थल आज भी सिख धर्म के महत्वपूर्ण केंद्र हैं:
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब, दिल्ली: यह वही स्थान है जहाँ गुरु जी को शहीद किया गया था।
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब, दिल्ली: यह वह स्थान है जहाँ गुरु जी के एक निडर शिष्य, भाई लखी शाह वंजारा, ने अपने घर को जलाकर उनका धड़ (शरीर) का अंतिम संस्कार किया, ताकि मुगलों को उनके अवशेष न मिल सकें।
गुरुद्वारा श्री आनंदपुर साहिब: उनके सिर को भाई जैता जी (जिन्हें बाद में भाई जीवन सिंह के नाम से जाना गया) द्वारा दिल्ली से सुरक्षित रूप से आनंदपुर साहिब लाया गया था और वहां पूर्ण सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
शहीदी दिवस का संदेश और उत्सव
गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस हमें उनके महान आदर्शों को याद करने और उनसे प्रेरणा लेने का अवसर देता है:
अहिंसा और सत्य: गुरु जी ने अपने बलिदान से यह सिखाया कि सत्य, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए हिंसा नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प और आत्म-त्याग की आवश्यकता होती है।
धार्मिक सद्भाव: उनका बलिदान किसी एक धर्म के लिए नहीं, बल्कि मानवाधिकारों और सभी धर्मों की स्वतंत्रता के लिए था।
उत्सव: इस दिन, देश और दुनिया भर के गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन (धार्मिक भजन) का आयोजन किया जाता है, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है, और गुरु जी की शिक्षाओं को याद किया जाता है। जगह-जगह लंगर (सामुदायिक भोजन) का आयोजन होता है और श्रद्धापूर्वक जुलूस निकाले जाते हैं।
गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस हमें अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने, मानवीय मूल्यों की रक्षा करने और धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों को बनाए रखने की प्रेरणा देता रहेगा।