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GTC News: ज़रा सोचिए, अगर किसी बुज़र्ग महिला को, वो भी एक विधवा महिला को न्याय पाने के लिए आधी ज़िंदगी ग़ुजार देनी पड़े, तो क्या उसे इंसाफ़ माना जाना चाहिए या नहीं? ख़ैर, इस बात क़ानून के जानकर अपनी राय पेश कर सकते हैं। दरअसल ऐसा ही कुछ हुआ है लक्ष्मी देवी के साथ। आपको ये सुनकर भले ही अजीब लग सकता है, लेकिन एक महिला ने अपने हक़ के लिए पांच दशक तक लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ी है। कोर्ट-कचहरी के अनगिनत चक्कर लगाए हैं।
हाईकोर्ट ने क्या फ़ैसला सुनाया?
आख़िरकरा लंबी जद्दोजहद और माथापच्ची के बाद पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट चंडीगढ़ ने एक लाइनमैन की विधवा बुज़ुर्ग महिला को पेंशन देने का आदेश सुना दिया है। हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि वह दो महीने के अंदर सभी क़ानूनी बकाया रकम वापस दिलाए। फ़िलहाल हाईकोर्ट का यह आदेश सुर्खियों में आ चुका है। हाई कोर्ट ने राज्य के बिजली डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को आदेश दिया कि वह ख़ुद उनके क्लेम को वेरिफाई करें और बकाया रकम जारी करें। कोर्ट ने अपने डिटेल्ड ऑर्डर में कहा कि एक कि 80 साल की विधवा को राहत देना समझदारी का मामला नहीं, बल्कि संवैधानिक तौर पर ज़रूरी है।
अपना ही विभाग नहीं आ सका काम!
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, लक्ष्मी देवी के पति महा सिंह लाइनमैन थे। वह लाइनमैन से सब-स्टेशन ऑफ़िसर बने थे। 1974 में काम करते हुए उनकी मौत हो गई। उन्हें 6,026 रुपये की एक्स-ग्रेशिया रकम मिली, जबकि फैमिली पेंशन, ग्रेच्युटी, लीव सैलरी और प्रोविडेंट फंड जैसे दूसरे फायदे विवादित रहे। बार-बार रिप्रेजेंटेशन और 2005 में एक रिट फाइल करने और RTI एप्लीकेशन के बावजूद, विभाग के अधिकारी मामले को सुलझाने में नाकाम रहे। उन्होंने इसकी ज़िम्मेदारी दूसरी तरफ़ डाल दी और ग़ायब रिकॉर्ड का हवाला दे दिया।
हाईकोर्ट ने बिजली विभाग की आलोचना की
सालों तक लंबी लड़ाई के बाद, "पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि जब भी कोर्ट सबसे कमज़ोर लोगों को फेल करते हैं, तो संविधान का वादा कमज़ोर हो जाता है, लेकिन हर बार जब वे हाशिए पर पड़े लोगों का बचाव करते हैं, तो संविधान की बदलने वाली भावना अपने असली रूप में चमकती है, पिटीशनर (बुजुर्ग महिला) बिना क्लैरिटी या राहत के लगभग पांच दशकों तक दर-दर भटकने को मजबूर थी, बुज़ुर्ग विधवा को उसके कई बार आने और बातचीत करने के बावजूद पूरी तरह से अनजान रखा।"